पिछले कुछ दिनों से देखा जा रहा है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल कोरोना से लड़ने में किया जा रहा है | विदेशों से भी इसकी मांग आ रही है खासतौर पर अमेरिका से | इस दवाई को मलेरिया होने पर दिया जाता है और भारत में इसका उत्पादन काफी अधिक है | परंतु हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का एक्सपोर्ट प्रतिबंधित है लेकिन अमेरिका के बदले की कार्यवाही की धमकी के बाद इसका निर्यात शुरू हुआ है और इसे लाइसेंस्ड भी कर दिया गया है |
बंगाल केमिकल्स & फार्मास्यूटिकल्स देश की मुख्य कंपनी है जो इस दवाई का उत्पादन करती है | 119 वर्ष पूर्व आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे ने इस कंपनी की स्थापना की थी | प्रफुल्ल चन्द्र रे भारत में रसायन शास्त्र के जनक के रूप में पहचाने जाते हैं |
क्लोरोक्वीन फॉस्फेट का उत्पादन कंपनी काफी समय से करती रही है क्योकि मलेरिया के इलाज में इसका उपयोग होता है और इसका असर बिलकुल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट के जैसा है | परंतु हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट को कंपनी ने बनाना काफी समय से बंद कर रखा है | चूंकि यह एकमात्र कंपनी है इस क्षेत्र में इसलिए नए नियमों के मुताबिक कंपनी को नया लाइसेंस बनवाना पड़ेगा |
COVID 19 में सबसे बड़ी महाशक्ति ने अमेरिका को भी भारत से मदद मांगने पर मजबूर कर दिया प्रफुल्ल चन्द्र रे की हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ने | तो आइये एक नज़र उनके जीवन पर भी डालते हैं |
भारत में रसायन शास्त्र को जन्म देने वाले आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे-
अगर देखा जाए तो भारत में रसायन शास्त्र और फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री को जन्म आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे ने ही दिया है (उन्हें इनका असली जनक माना जाता है) | आजादी के पूर्व भारत और आज के बांग्लादेश के खुलना डिस्ट्रिक्ट के अंतर्गत आने वाले ररुली कतिपरा में 2-08-1861 को इनका जन्म हुआ | शुरुआती पढाई पिता हरिवंश के द्वारा स्थापित स्कूल में ही हुई | पर 12 साल के बाद इन्हें वैज्ञानिकों का जीवन एवं चरित्र बेहद प्रभावित करने लगा |
एक अंग्रेजी किताब में 1000 महान व्यक्तियों की सूची में सिर्फ राजा राम मोहन राय का नाम देखा और उसके बाद उन्हें उस सूची में अपना नाम लाने का जुनून सवार हो गया | इसके बाद कलकत्ता यूनिवर्सिटी से डिप्लोमा और फिर 1882 गिल्क्राइस्ट छात्रवृत्ति लेकर विदेश गए रसायनों की पढाई के लिए | एक साल के लिए सोसाइटी और केमिस्ट्री (एडिनबरा) के उपाध्यक्ष के तौर पर चुने गए | फिर भारत वापस आकर जगदीश चन्द्र बोस के साथ एक वर्ष काम किया और प्रेसीडेंसी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर बन गए |
सिर्फ 800 रुपयों की लागत से शुरू की भारत की सर्वप्रथम फार्मास्यूटिकल कंपनी-
आचार्य रे ने सर्वप्रथम मरकरी पर प्रयोग किया था सन 1894 में और मरकरी से मरक्यूरस नाइट्रेट नामक पदार्थ को लैब में तैयार किया था | उन्होंने बहुत पहले ही भांप लिया था कि अगर जीवन रक्षक दवाओं की बात आएगी तो भारत दुसरे देशों से मदद मांगने पर मजबूर हो जाएगा |
उन्हें पता था अगर भारत को तरक्की करनी है तो औद्योगिकीकरण इसकी लिए महत्वपूर्ण है | इसलिए उन्होंने घर से ही अपना काम किया और मात्र 800 रुपयों की लागत से प्रथम कारखाना बनाया जहाँ रासायनिक काम होते थे | 1901 में बंगाल फार्मास्यूटिकल्स को बनाने का काम चालु हुआ और आज इस कंपनी ने एक नया मुकाम हासिल कर लिया है |
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