“कशी मथुरा मंदिर में हिन्दुओ की याचिका को काबुल न करे – इससे मुस्लिमो में भय उत्पन्न होगा!” – SC से जमीयत उलेमा-ए-हिन्द

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विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ – हिन्दू पुजारियों के संगठन ने भारत के सर्वोच्च न्यालय में धार्मिक के एक्ट १९९१ की धरा ४ की चुनौती दे चुके है। इस एक्ट में आयोध्या राम मंदिर की भूमि को छोड़के अन्य और भी पवित्र स्थलों का धार्मिक चरित्र भी वैसा बनाए रखने का प्रावधान है। 

अयोध्या के विवाद के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में कशी और मथुरा के याचिकाओं को लेकर किस्सा शुरू हो गया है। हिन्दू याचिकाओं के बाद अब मुस्लिम पक्ष भी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने मकबूल नामक वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी करके हिन्दू पुजारियों की याचिका का विरोध दिखाया है। 

उलेमा-ए-हिन्द की और से दी गई याचिका में यह कहा गया है कि हिन्दू पुजारियों के पक्ष की याचिका पर नोटिस न दिया जाए। उनका यह कहना है कि मामले में नोटिस जारी करने से मुस्लिम लोगो में अपने इबादत को लेके उनके स्थलों को लेके उनके मन में भय उत्पन्न होगा। 

कानून से लड़ने कि तयारी शुरू!

याचिका में साफ़ साफ़ अयोध्या विवाद का संदर्ब देते हुए यह शामिल किया गया है कि इसके परिणाम स्वरुप के बाद इसी तरह कि याचिका से मुस्लिमो के मन में भय उत्पन्न होगा जिससे देश का धर्म पक्ष में निष्टुरता से ताना शाही होगा। उसी के साथ उलेमा-ए-हिन्द ने यह कहा कि उसे सम्बंधित मामले में पक्ष कार बनाए। 

हिन्दू पुजारियों के धर्म स्टॉक एक्ट को रद्द करने कि कोशिस जारी है। हिन्दू संगठन काशी मथुरा जैसे पवित्र हिन्दू स्थल को प्राप्त करने के लिए क़ानूनी लड़ाई कि तयारी जारी कर दी है। 

अधिनियम कि धरा ४ में यह कहा गया है कि या कहिये घोषणा कि गई है कि १५ अगस्त १९४७ को जो भी धार्मिक स्थल जिस भी संप्रदाय का था वो आज भी और भविष्य में भी उन्ही का रहेगा। जैसे किसी भी मस्जिद को मंदिर नहीं बनाया जा सकता है और वहीँ मंदिर को भी मस्जिद या अन्य कोई भी धर्म स्थल को बदला नहीं जा सकता है। अयोध्या के विवाद को इससे अलग क्यों रखा गया फिर? यह इसलिए क्यूंकि यह क़ानूनी विवाद पहले से ही चल रहा था। 

इस कानून को रद्द करने कि मांग!

विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ कि और से जो याचिका दर्ज थी उसमे कहा गया है कि या कानून हिन्दुओ के अधिकारों को खत्म करने वाला है – इसे रद्द करदेना चाहिए। याचिका में यह कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद २५ लोगो को अपनी धार्मिक आस्था को पलने का अधिकार देता है। 

महासंघ के हिंसा से संसद ने १९९१ में एक कानून बनाया था जो सीधे सीधे हिन्दुओ को उनके अधिकार से वंचित कर दिया था। कशी मथुरा जो कि एक पवित्र धार्मिक स्थलों पर मस्जिद बनाई हुई है। किन्तु संसद ने कानून बना दिया और हिन्दुओ को विदेशी आक्रमणकारियों कि इन्ही निशानियों को चुनौती देने से रोक देते है। कोर्ट से आग्रह भी किया गया है कि धार्मिक स्थल एक्ट कि धरा ४ को असंवैधानिक करार को देते हुए रद्द कर दे। 

याचिका में काढ़ि विध्वनाथ और मथुरा के मंदिर विवाद को लेके क़ानूनी प्रक्रिया शुरू कर देने कि मांग रखी गई है।  याचिका में यह कहा गया है कि इसी अधिनियम को सब लोग चुनौती नहीं दी गई है और न ही किसी भी अदालत ने न्यायिक तरीके से इस पर सोचा है। अयोध्या विवाद में भी यह उच्चतम न्यायालय कि संविधान पीठ ने इसी पर टिप्पणी भी कि थी।

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