जिसने अकेले मार गिराए थे 300 चीनी सैनिक 1962 में – वो शहीद आज भी अपनी ड्यूटी करता है और प्रमोशन भी मिलता है।

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आज यहाँ हम बात कर रहे है एक ऐसे सैनिक की जिसमे सन 1962 में चीन की सेना के खिलाफ 72 घंटो तक जंग लड़ी थी और ३०० चीनी सैनिको को मार डाला था।  देश के इस जाबाज़ सैनिक जो आज शहीद होक भी देश की करता है रक्षा। आज भी इस जाबाज़ सैनिक के सम्मान में उनको आज भी एक जिन्दा सैनिक की तरह रखा जाता है। सुबह उन्हें दी जाती है बेड tea और ९ बजे नाश्ता फिर रात में खाना भी परोसा जाता है। रोजाना इनके बूट को पोलिश किया जाता है – हां जसवंत सिंह रावत की ही बात हो रही है। 

इन्हे राइफल मैन कहा जाता है। जसवंत सिंह ने 1962 में नूरानांग की जंग में असाधारण वीरता प्रस्तुत की थी और उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया था सम्मान के साथ। 

सन 1962 में चीन के साथ हुआ युद्ध में शहीद हुए जसवंत सिंह  की यह कहानी काफी लोग जानते ही नहीं होंगे। उन्होंने 72 घंटो तक चीनी सैनिको से लड़ाई की थी वो भी अकेले और 300 चीनी सैनिको को मार गिराया था अकेले अपने दम पर। और यह सब 72 नवंबर 1962 को तब हुआ था जब चीन की सेना तवांग से आगे निकल कर नूरानांग पहुंच चुकी थी। गुवाहाटी से तवांग जाने के मार्ग पर 12,000 फ़ीट की उचाई पर जसवंत सिंह के युद्ध का स्मारक बनाया है।  यह 1962 में हुए युद्ध में शहीद जाबाज़ जसवंत सिंह रावत के बलवान, शौर्य और बलिदान की कहानी बताता है और उनका स्मरण दिलाता है। 

72 घंटो तक जंग की और 300 चीनी सैनिको को मार गिराया। 

1962 की लड़ाई में आखिरी दौर में अरुणाचल प्रदेश के एक जिले तवांग में नूरांग में जसवंत सिंह ने अकेले एक जंग लड़ी और यह वही समय था जब चीन के सेना थी हर मोर्चे पर भारत पर हावी था। इसकी वजह से नूरांग में तैनात गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापिस भुला लिया गया था।  किन्तु जसवंत सिंह, त्रिलोक सिंह नेगी,और गोपाल सिंह गुसाई ने वापिस न जाने का ठान लिया और चीन की सैनिको से लड़ने का भी ठान लिया। जसवंत सिंह ने अलग अलग जगहो पर इस तरह से राइफल तैनात करके फायरिंग की जिससे चीन की सैनिको को लगा कि वहां अभी भी बहुत सारे सैनिक है। 72 घंटो तक 300 चीन कि सेना को मारने के बाद जसवंत सिंह शहीद हो गए। 

मरने के बाद अभी भी करते है ड्यूटी, और छुट्टियां भी की जाती है मंजूर। 

भारतीय सैनिक जसवंत सिंह रावत के शहीद होने के बाद भी उनके नाम के आगे स्वर्गीय या शहीद नहीं लगाया जाता है। क्यूंकि भारतीय सेना का यह जाबाज़ आज भी अपनी ड्यूटी रोज करता है। वह आज भी अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में अपनी ड्यूटी करते है। भूत प्रेत को इंकार करने वाली सेना उनकी मौजूदगी को महसूस करती है और इंकार भी नहीं कर पाती। जसवंत सिंह के नाम से चीन और उनकी सेना आज भी दहशत में रहते है।  हर दिन उनका जूता किया जाता है किन्तु रात को जब भी उनका जूता देखा जाता है तो ऐसा लगता है जैसे इसे कोई पहन कर गया था बहार। सेना जसवंत सिंह को प्रमोशन और छुट्टियां भी दी जाती है। शहीद होने के बाद आज तक उनका प्रमोशन होता आ रहा है और आज मेजर जनरल के पद तक पहुंच गए है। 

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