जब शाक्तिकांत दास, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर ने अपने अंतिम मौद्रिक टिप्पणी जारी की, तो उल्टिमा मार्केट्स ने 14 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में घोषित किया कि भारतीय शेयर‑बाज़ार में अचानक गिरावट ने कई लाख करोड़ रुपए की कीमत मिटा दी है। यह 2025 स्टॉक मार्केट क्रैशमुंबई के मध्य‑अगस्त से मध्य‑सितंबर तक का एक तेज़‑तर्रार रोलरकोस्टर था, जिसमें बीएसई सेंसेक्स एक ही सत्र में 600‑से‑अधिक अंक नीचे गिरा और निफ्टी 50 के स्तर 24,700‑25,100 के तकनीकी समर्थन को तोड़ गया।
पृष्ठभूमि और बाजार की स्थितियाँ
क्रैश का असर तब अधिक गहराया जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने वर्ष‑तो‑डेट लगभग Foreign Portfolio Investors 13‑15 बिलियन डॉलर (लगभग 1.1‑1.2 लाख करोड़ रुपये) निवेश वापस ले लिया। साथ‑ही‑साथ रूबल का 1 डॉलर पर 88 रुपये के स्तर को तोड़ना, यूरो‑डॉलर के अस्थिर संकेतों के साथ मिलकर निवेशकों के मन में भय पैदा कर गया। इस समय भारत में महंगाई बेहद कम थी, जिससे RBI को तेज़‑तर्रार नीतिगत आराम नहीं देना पड़ा; उल्टा, यह स्थिति भी बाजार में लिवरेज की तेज़‑तर्रार unwind को बढ़ावा दिया।
क्रैश के प्रमुख कारण
उल्टिमा मार्केट्स के अनुसार सात प्रमुख कारण थे:
- भारी FPI आउटफ़्लोज़ – शेयर कीमतों और रुपये दोनों पर दबाव।
- रुपये का मूल्य‑ह्रास – नकारात्मक फीड‑बैक लूप।
- US‑India व्यापार‑तनाव – विदेशी निवेशकों का भरोसा घटाया।
- कठोर कॉरपोरेट कमाई – पहले के अधिक मूल्यांकित शेयरों पर टक्कर।
- वित्तीय सेक्टर की कमजोरी – Nifty और Sensex में वित्तीय वज़न अधिक।
- डेरिवेटिव की unwind – उच्च अस्थिरता।
- वैश्विक तरलता संकट – US 10‑साल के ट्रेज़री यील्ड 4.5% से ऊपर।
इन कारणों को Citi की ‘Neutral’ रेटिंग और US फेडरल रिज़र्व के अगले मौद्रिक कदमों के बारे में अनिश्चितता ने और अधिक बढ़ा दिया।
मुख्य सेक्टरों एवं शेयरों पर प्रभाव
बैंकीय शेयर सबसे ज़्यादा झोंके में थे। Axis Bank के कम‑आशय earnings, HDFC Bank और Kotak Mahindra Bank के साथ मिलकर Nifty Private Bank इंडेक्स को नीचे खींचे। इस दौरान धातु सेक्टर (लगभग 5% शेयर) ही हरा नहीं रहा; बाकी सभी सेक्टर – आईटी, ऑटो, रियल एस्टेट – ने नकारात्मक ब्रेड्थ दिखाया।
सेंसेक्स कई सत्रों में 700‑अंक से अधिक गिरते हुए 24,600 के मनोवैज्ञानिक स्तर के नीचे पहुँचा, जबकि निफ्टी 50 ने 24,600‑प्लस समर्थन को तोड़ दिया। इस उतार‑चढ़ाव के कारण फंड‑मैनेजरों ने अक्सर “हॉन्गरी आर्गनाइज़र” की तरह नुक़सान बंद करने की कोशिश की, जिससे अधिक बेच‑फरोख़्त का दबाव बढ़ा।

विशेषज्ञों और संस्थाओं की प्रतिक्रिया
RBI गवर्नर दास ने कहा, “मंदी‑पर्याप्त संकेत मिलने पर ही रेट‑कट की संभावना है, इस समय हमें सतर्कता बरतनी चाहिए।” वहीं, IndiTrade के विश्लेषकों ने उभरे जोखिम को “विश्व‑स्तरीय जोखिम‑ऑफ मोड” कहा और सलाह दी कि छोटे‑मध्यम निवेशकों को हेजिंग रणनीति अपनानी चाहिए।
एक वरिष्ठ फंड‑मैनेजर ने कहा, “अब की स्थिति में गुणवत्ता‑कंपनियों की शेयरों में सतत निवेश ही एकमात्र सुरक्षित मार्ग है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि “डायवर्सिफ़ाइड पोर्टफ़ोलियो, स्टॉप‑लॉस और प्रतिस्थापन शेयरों के साथ जोखिम को सीमित किया जा सकता है।”
भविष्य की दिशा और निवेशक टिप्स
निम्नलिखित बिंदु आगे के बाजार रुझानों को समझने में मदद करेंगे:
- यदि US फेड निकट भविष्य में रेट‑कट की घोषणा करता है, तो विदेशी पूँजी पुनः प्रवाह संभव है।
- रुपये की स्थिरता बड़ी अहमियत रखेगी; RBI की उपयुक्त हँड‑लिंग से जोखिम‑प्रोफाइल बदल सकता है।
- भारतीय लेकर‑दिल‑के‑क्रेडिट‑इंडेक्स में सुधार होने पर वित्तीय सेक्टर पुनः उछाल सकता है।
- ग्लोबल कमॉडिटी कीमतों की स्थिरता, खासकर तेल, बाजार को सुदृढ़ करेगी।
सार में, इस स्टॉक मार्केट क्रैश से निपटने के लिए अल्पकालिक ट्रेडिंग में अनुशासन, हेजिंग और रियल‑टाइम डेटा का उपयोग आवश्यक है, जबकि दीर्घ‑कालिक निवेशकों को गुणवत्ता‑बिज़नेस मॉडल, मजबूत बैलेंस‑शीट और डिविडेंड देने वाले कंपनियों पर ध्यान देना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
यह क्रैश रूढ़िवादी निवेशकों को कैसे प्रभावित करता है?
रूढ़िवादी निवेशक जो बड़ी हिस्सेदारी को स्थिर रिटर्न वाले बांड या सरकारी सिक्योरिटीज़ में रखते हैं, उन्हें बाजार‑उछाल के कारण पोर्टफ़ोलियो वैल्यू में गिरावट देखी गई। हालांकि, नुकसान को सीमित रखने के लिए उन्होंने अपने इक्विटी एक्सपोज़र घटाया और मौजूदा डिविडेंड‑यील्ड वाले ब्लू‑चिप शेयरों पर फिर से ध्यान दिया।
क्या RBI की मौद्रिक नीति इस गिरावट का कारण बनी?
RBI ने अभी तक कोई तेज़‑तर्रार रेट‑कट नहीं किया, क्योंकि घटती महंगाई ने तेज़‑रिलैक्स की जरूरत नहीं बनाई। यह हिचकिचाहट ने बाजार को यह सोच दिया कि निचले स्तर पर भी ब्याज‑दरें नहीं घटेंगी, जिससे फंड‑मैनेजर्स ने अपने लीवरेज‑पोज़ीशन को unwind किया।
क्या विदेशी निवेशकों का बहिर्गमन स्थायी है?
अभी के आंकड़े दर्शाते हैं कि FTSE‑Nikkei‑Shanghai‑पैकेज के साथ बड़े विदेशी फंडों ने निचले स्तर पर पोर्टफ़ोलियो को री‑एसेस किया है। यदि US फेड की नीति में बदलाव आए और रु-पे की स्थिरता बनती रहे, तो कुछ हिस्से पुनः भारत की ओर प्रवाहित हो सकते हैं।
बैंकों के शेयरों में फिर से भरोसा कब बन सकता है?
बैंकों की कमाई में सुधार, खराब लोन रेट के घटने और RBI की स्ट्रीट‑लीक्विडिटी सपोर्ट के साथ, अगले तिमाही में NPA प्रतिशत में कमी देखी जा सकती है। इससे बैंकों के शेयरों में पुनः निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा, खासकर जब वित्तीय सेक्टर को निफ्टी में 35% वेटेज मिल रहा है।
छोटे निवेशकों को इस दौर में क्या करना चाहिए?
स्थिर आय वाले म्युचुअल फंड, छोटे‑कैप क्वालिटीज़ और गोल्ड ETF जैसे विकल्प जोखिम को कम कर सकते हैं। साथ ही, स्टॉप‑लॉस सेट करना और पोर्टफ़ोलियो को लगभग 30% नकद में रखें, ताकि बाजार‑उतार‑चढ़ाव से बचा जा सके।